आखिरकार कांग्रेस और सपा के गठबंधन पर मुहर लग ही गई। इसके साथ अमरोहा लोकसभा सीट कांग्रेस के खाते में चली गई है। सपा और कांग्रेस के गठजोड़ ने राजनीतिक गलियारों में एक बार फिर से हलचल मचा दी है। कयास लगाए जा रहे हैं कांग्रेस कांग्रेस वर्तमान सांसद कुंवर दानिश अली पर दांव खेलेगी या फिर अन्य कोई और मैदान में उतारेगी।
माना जा रहा है बसपा से निलंबन और कांग्रेस से नजदीकियां दानिश की राह आसान बना सकती है। उधर, सपा से टिकट की दावेदारी जताने वालों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। पिछले दिनों भाजपा और रालोद के गठबंधन की संभावना बनते ही सपा और कांग्रेस की जुगलबंदी शुरू हो गई।
बुधवार को दोनों के गठबंधन होने की घोषणा भी कर दी गई। अमरोहा समेत 17 लोकसभा सीट कांग्रेस के खाते में चली गई हैं। इसके साथ ही अमरोहा लोकसभा सीट पर नई चुनावी बिसात बिछेगी। कहा जाए तो जिले में सपा के सहारे कांग्रेस को एक तरह से संजीवनी मिल गई है।
लेकिन, कांग्रेस किस पर दांव खेलेगी, यह हर किसी के सामने सवाल है। क्या, सपा से लाइन में खड़े दावेदार कांग्रेस में शामिल होंगे या फिर कांग्रेस का ही कोई चेहरा सामने आएगा। उधर, वर्तमान सांसद कुंवर दानिश अली भी इस लिस्ट में सबसे आगे माने जा रहे हैं। पिछले दिनों राहुल गांधी से मुलाकात और कांग्रेस की यात्रा में शामिल होना उनके लिए अहम साबित हो सकता है।
चार बार अमरोहा सीट पर रह चुका है कांग्रेस का कब्जा
पिछले चुनावी आंकड़ों की बात करें तो कांग्रेस का चार बार अमरोहा लोकसभा सीट पर कब्जा रहा है। 1992 में सबसे पहली बार मौलाना मोहम्मद हिफ्जुर रहमान सांसद चुने गए थे। इस दौरान ये लोकसभा मुरादाबाद सेंट्रल के नाम से जानी जाती थी।
इसके बाद कांग्रेस ने 1957 में दोबारा से मौलाना मोहम्मद हिफ्जुर रहमान को अपना प्रत्याशी बनाया था। ये चुनाव भी कांग्रेस जीती थी। इस दौरान मौलाना मोहम्मद हिफ्जुर रहमान ने भारतीय जनसंघ के उम्मीदवार मोटाराम को हराया था।
इतना ही नहीं 1962 में तीसरी बात मौलाना मोहम्मद हिफ्जुर रहमान चुनाव जीतकर लोकसभा सदस्य चुने गए थे। इस दौरान उन्होंने जनसंघ के हरदेव शाही को हराया था। इसके बाद 1984 में कांग्रेस प्रत्याशी बनाकर मैदान में आए रामपाल सिंह सांसद चुने गए थे।
उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी निर्दलीय के उम्मीदवार इशरत अली अंसारी को हराया था। रामपाल सिंह मुरादाबाद से सांसद रहे कुंवर सर्वेश सिंह के पिता थे।
1984 के बाद से जमीन तलाश रही कांग्रेस
वर्ष 1984 से बाद से अब तक कांग्रेस अमरोहा लोकसभा क्षेत्र में अपना अस्तित्व तलाश रही है। इससे पहले वर्ष 1977 में भारतीय लोकदल के उम्मीदवार चंद्रपाल सिंह से कांग्रेस प्रत्याशी सत्तर अहमद को हार का सामना करना पड़ा था।
जबकि वर्ष 1989 में जनता दल के प्रत्याशी हरगोविंद सिंह के सामने कांग्रेस प्रत्याशी खुर्शीद अहमद को हार का मुंह देखना पड़ा। वर्ष 1989 के बाद कांग्रेस प्रत्याशी अपने प्रतिद्वंदी प्रत्याशियों की टक्कर नहीं संभाल सके।
उधर, सपा का प्रदर्शन भी अमरोहा में खास नहीं रहा है। 17 बार हुए लोकसभा चुनाव में वर्ष 1996 में ही सपा के प्रताप सिंह ही यहां से जीत हासिल कर सके हैं।
अमरोहा सीट कांग्रेस के खाते में आई है। अब पूरे दम से चुनाव लड़ा जाएगा। चुनाव में मेरी दावेदारी रहेगी। हालांकि अब तक प्रदेश महामंत्री सचिन चौधरी, पूर्व सांसद राशिद अल्वी, मनोज कटारिया, पूर्व जिलाध्यक्ष सुखराज चौधरी समेत अन्य नेता दावेदारी जता रहे हैं। कुंवर दानिश अली पर हाईकमान का जो फैसला होगा, उसे स्वीकार किया जाएगा। हालांकि, संगठन के लोगों को वरीयता मिलनी चाहिए।
सपा और कांग्रेस का गठबंधन फाइनल हो गया है। अमरोहा सीट कांग्रेस के खाते में गई है, जो प्रत्याशी मैदान में आएगा। उसे पूरे दमखम से चुनाव लड़ाया जाएगा। पार्टी हाईकमान का जो फैसला है उस पर कार्य किया जाएगा।