देश में नेशनल हाईवे और एक्सप्रेस-वे का नेटवर्क बड़ा होता जा रहा है, इसके साथ ही तेज गति के कारण होने वाले हादसों और उनसे होने वाली मौतों की चुनौतियां भी बढ़ती जा रही हैं। इन हादसों की रोकथाम के लिए ब्लैक स्पॉट चिह्नित कर उनके सुधार की वर्षों से चली आ रही प्रक्रिया के साथ ही सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय नए प्रयासों के तहत अपनी कवायद को आगे बढ़ाने की तैयारी में है।
मंत्रालय देशभर में फैले राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच) नेटवर्क के उस हिस्से को भी व्हाइट कॉरिडोर के रूप में चिह्नित कर रहा है, जहां तीन वर्ष में एक भी सड़क हादसा नहीं हुआ। ऐसे हिस्से को चिह्नित कर अधिकाधिक संसाधन और परिश्रम ब्लैक स्पॉट पर खर्च करने का विचार है ताकि उन्हें सुरक्षित बनाया जा सके।
सरकार तेजी से एक्सप्रेस-वे और हाईस्पीड कॉरिडोर विकसित करने में भी जुटी
देश में इस वक्त लगभग एक लाख 46 हजार किलोमीटर का नेशनल हाईवे नेटवर्क है। सरकार तेजी से एक्सप्रेस-वे और हाईस्पीड कारिडोर विकसित करने में भी जुटी है। एनएच नेटवर्क 2014 में 91,287 किलोमीटर था जोकि 2024 में 60 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 1,46,145 किलोमीटर हो गया।
फोरलेन या उससे अधिक के राष्ट्रीय राजमार्गों की लंबाई 18,371 किलोमीटर से 2.6 गुणा बढ़कर 48,522 किलोमीटर हो गई, जबकि राष्ट्रीय राजमार्ग के हाईस्पीड कारिडोर की लंबाई 2014 में 93 किलोमीटर थी और 2024 में 2138 किलोमीटर हो चुकी है। विकास की इस रफ्तार के साथ हादसों पर न लगने वाली रोकथाम बहुत बड़ी चिंता है।
सड़क सुरक्षा के नाकाफी प्रयासों की तस्वीर सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की वर्ष 2023-24 की वार्षिक रिपोर्ट दिखाती है। इसमें आंकड़ा दिया गया है कि वर्ष 2021 की तुलना में वर्ष 2022 में सड़क दुर्घटनाओं में 11.9 प्रतिशत, मरने वालों में 9.4 प्रतिशत और घायलों की संख्या में 15.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
सड़क दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार तेज गति
दुखद पहलू यह भी है कि इन हादसों में जान गंवाने वालों में 18 से 45 आयु वर्ग के वयस्कों की संख्या 66.5 प्रतिशत थी, जबकि 18 से 60 वर्ष तक के कामकाजी आयु वर्ग की बात करें तो यह आंकड़ा 83.4 प्रतिशत पहुंच जाता है। रिपोर्ट कहती है कि इन सड़क दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार एकमात्र सबसे महत्वपूर्ण कारक तेज गति है। 2022 में जितनी भी दुर्घटनाएं हुईं, उनमें 72.3 प्रतिशत हादसे तेज गति की वजह हुए। 71.2 प्रतिशत मौतों के लिए भी यही कारक जिम्मेदार रहा।
मंत्रालय विशेषज्ञों की सलाह पर कर रहा काम
सामने दिखाई दे रहे इस स्याह तथ्य के बीच मंत्रालय विशेषज्ञों की उस सलाह पर भी काम कर रहा है, जिसमें कहा गया है कि रोड नेटवर्क के छोटे-छोटे सुरक्षित हिस्सों को चिह्नित कर उनका दायरा बढ़ाया जाए। पहले यह कवायद पांच-पांच किलोमीटर के हिस्से चिह्नित कर शुरू की गई थी।
मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि अब सरकार व्हाइट कॉरिडोर की अवधारणा की ओर बढ़ रही है। कुल एचएच नेटवर्क के उन हिस्सों को चिह्नित किया जा रहा है, जहां तीन साल में एक भी सड़क हादसा नहीं हुआ। अनुमान है कि ऐसा करीब 18 प्रतिशत हिस्सा है, जिसे व्हाइट कॉरिडोर कहा जा सकता है। पूरी रिपोर्ट तैयार होने के बाद व्हाइट कॉरिडोर को तकनीकी रूप से तुलनात्मक अध्ययन के लिए भी प्रयोग किया जाएगा।
ब्लैक स्पॉट पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा
देखा जाएगा कि यह कैसे सुरक्षित हैं और इनके उपाय दुर्घटना बहुल क्षेत्रों में भी अपनाए जाएं। इसके अलावा सड़क सुरक्षा के लिए इन व्हाइट कॉरिडोर पर संसाधन खर्च करने की बजाए सिर्फ ब्लैक स्पॉट पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। मंत्रालय के अनुसार, 2024-25 तक सुधार के लिए 9,733 ब्लैक स्पाट चिह्नित किए हैं। इनमें से मार्च, 2024 तक 4,621 ब्लैक स्पाट को स्थायी उपायों के माध्यम से ठीक कर दिया गया है। बाकी के लिए काम चल रहा है।