भारत ने हाल के महीनों में कई वैश्विक मंचों से ढांचागत योजनाओं को वित्त सुविधा देने की आड़ में दूसरे देशों की संप्रभुता के साथ छेड़छाड़ करने के मुद्दे को उठाया है। अब इस पर भारत जी-20 देशों के समक्ष अपनी सोच और ठोस तरीके से पेश करेगा और साथ ही यह भी बताएगा कि छोटे व विकासशील देशों की परियोजनाओं को मदद के लिए किन मुद्दों को ध्यान में रखना चाहिए।
पहली बैठक भारत की अध्यक्षता में होगी
16 -17 जनवरी, 2022 को जी-20 देशों की इंफ्रास्ट्रक्चर वर्किंग ग्रूप (आइडब्लूजी) की पहली बैठक भारत की अध्यक्षता में होगी। इसमें भारत की तरफ से इस संबंध में अपने विचार व सुझाव पेश किये जाएंगे। भारत विकासशील देशों को वैश्विक एजेंसियों की तरफ से ढांचागत विकास के लिए वित्त सुविधा उपलब्ध कराने के मौजूदा तौर-तरीकों में भी बदलाव पर सुझाव रखेगा। बैठक की अध्यक्षता वित्त मंत्रालय का आर्थिक विभाग का विभाग करेगा, जबकि आस्ट्रेलिया और ब्राजील सह-अध्यक्षता करेंगे।
वित्त व्यवस्था में बड़े बदलाव का आह्वान
बैठक में जिन मुद्दों की चर्चा की जानी है, उसमें ढांचागत वित्त सुविधा की गुणवत्ता में सुधार करना और वित्त सुविधा के लिए नए माध्यम को खोजना। हाल ही में वायस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट में विकासशील देशों के वित्त मंत्रियों की बैठक में वित्त मंत्री सीतारमण ने ढ़ांचागत वित्त व्यवस्था में बड़े बदलाव का आह्वान किया था। पुणे में होने वाली जी20 बैठक में वित्त मंत्रालय की तरफ से इस मांग के तहत ही प्रस्ताव रखे जाएंगे। इस बैठक में शहरों की स्थिति सुधारने और इनके विकास के लिए वित्त सुविधाओं को उपलब्ध कराने के विषय पर भी चर्चा होगी।
इन विषयों पर होगी चर्चा
शहरी क्षेत्र में भविष्य की जरूरत के मुताबिक इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को किस तरह से वैश्विक एजेंसियों से लोन दिलाया जाए, इस विषय पर भी चर्चा होगी। सूत्रों का कहना है कि पुणे में होने वाली बैठक इस बारे में शुरुआत है और इसमें सभी देशो की तरफ से अपने अपने सुझाव रखे जाएंगे। इस बारे में वर्ष 2020 और वर्ष 2021 के दौरान भी काफी चर्चाएं हुई थी। पूर्व की बैठकों में शहरों में पर्यावरण के अनुकूल ऊर्जा आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए क्या किया जाए, पर खास चर्चा नहीं हुई है।
चीन कई देशों पर दबाव बना चुका है
वर्ष 2022 में बाली घोषणापत्र में भी कहा गया था कि हरित ऊर्जा परियोजनाओं के लिए वित्त उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती है। माना जा रहा है कि इस साल की जी20 के शीर्षस्तरीय बैठक के बाद जारी होने वाले घोषणपत्र में इस बारे में अनुशंसाएं होंगी। सनद रहे कि विकासशील देशों को बाहरी कर्ज और खास तौर पर ढांचागत परियोजनाओं के लिए कर्ज उपलब्ध कराने की आड़ में चीन कई देशों पर दबाव बना चुका है। भारत सबसे पहला देश है जिसने चीन का नाम लिये बगैर इस मुद्दे को उठाया। अब अमेरिका, जापान व कुछ यूरोपीय देश भी इस मुद्दे को उठा रहे हैं। वर्ष 2020 में जी20 बैठक में चीन की तरफ से वित्त सुविधा देने के मु्द्दे को उठाया गया था।