कलकत्ता हाई कोर्ट ने पुरुषों के लिए पैटरनिटी लीव को लेकर अहम टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि महिलाओं की तरह पुरुष कर्मचारियों को भी अपने बच्चों के देखभाल के लिए छुट्टियां मिलनी चाहिए।
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि पुरुष कर्मचारियों को भी बच्चों की देखभाल के लिए समान अवकाश प्रदान करना चाहिए। समानता व लैंगिक भेदभाव के मुद्दे को ध्यान में रखकर इस मामले में निर्णय लिया जाना चाहिए। परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी माता-पिता द्वारा समान रूप से साझा की जानी चाहिए। अब समय आ गया है कि राज्य सरकार को पुरुष और महिला कर्मचारियों के लिए समान व्यवहार करना चाहिए।
शिक्षक की याचिका पर टिप्पणी
हाईकोर्ट ने ये टिप्पणी निजी स्कूल के एक शिक्षक की याचिका पर की है। न्यायमूर्ति अमृता सिन्हा ने कहा कि सरकार को अपने पुरुष कर्मचारियों को महिलाओं की तरह ही 730 दिनों के बाल देखभाल अवकाश का लाभ देने पर निर्णय लेना चाहिए। चूंकि इस तरह का लाभ देना राज्य सरकार का नीतिगत निर्णय है, इसलिए वित्त विभाग के संयुक्त सचिव को समानता और लैंगिक भेदभाव के मुद्दे को ध्यान में रखते हुए मामले में निर्णय लेने का निर्देश दिया गया है।
याचिका में क्या है दलीलें?
बता दें कि उत्तर 24 परगना जिले के एक प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक अबू रेहान ने अपने बच्चे की देखभाल के लिए अवकाश बढ़ाने की प्रार्थना की थी। अबू रेहाने ने अपनी याचिका में कहा था कि कुछ महीने पहले उनकी पत्नी की मृत्यु हो चुकी है। उनके दो छोटे बच्चे हैं। उनके अलावा बच्चों की देखभाल करने वाला कोई नहीं है।
पुरुष कर्मचारियों को दो साल की पैटरनिटी लीव मिलेगी?
रेहान की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायाधीश ने निर्देश दिया कि संबंधित प्राधिकारी उनके आवेदन पर तीन महीने के भीतर निर्णय लें और तर्कसंगत आदेश पारित कर उन्हें सूचित करें। रेहान के वकील शमीम अहमद ने कहा कि 2016 में बंगाल सरकार ने अपने पुरुष कर्मचारियों के लिए 30 दिनों के लिए बाल देखभाल अवकाश की शुरुआत की थी, जो पर्याप्त नहीं हैं जबकि महिला कर्मचारियों को बाल देखभाल अवकाश के रूप में अधिकतम दो वर्ष या 730 दिन की अवधि दी गई है।