गठिया एक बेहद दर्दनाक बीमारी है। जिसकी वजह से जोड़ों में बहुत ज्यादा जर्द होता है। कुछ लोगों में ये तकलीफ इतनी बढ़ जाती है कि उनके जॉइंट्स बेकार हो जाते हैं, और फिर सर्जरी की जरूरत होती है। हालांकि अगर इसे कंट्रोल किया जाोए तो कोई परेशानी नहीं होगी। अर्थराइटिस में जॉइंट पेन, सूजन के बाद जोड़ों में परमानेंट डैमेज तक हो सकता है इसके लिए लोग दवाओं से लेकर घरेलू उपचारों तक की मदद ले सकते हैं। यहां कुछ आयुर्वेदिक टिप्स बता रहे हैं जो गठिया के ट्रीटमेंट और इसे मैनेज करने में आपकी मदद कर सकते हैं।
क्या है पारंपरिक इलाज?
गठिया के पारंपरिक इलाज में दर्द को कम करने के लिए पेन किलर दवाएं, दर्द और सूजन दोनों को कम करने के लिए नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाएं और सूजन को कम करने और इम्यून सुस्टन को दबाने के लिए कॉर्टिकोस्टेरॉइड शामिल हैं।
लंबे समय तक चलती है दवा
गठया रोगी को लंबे समय तक दवाओं के इस्तेमाल के कारण परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। फिजियोथेरेपी जोड़ों के आसपास की मांसपेशियों को मजबूत करने और गति की सीमा में सुधार करने के लिए निर्धारित है। कुछ मामलों में दर्द को कम करने और काम में सुधार करने के लिए जोड़ों को फिर से संरेखित करने के लिए सर्जरी की सिफारिश की जाती है। हालांकि, इसते भी कुछ साइड इफेक्ट्स हैं।
क्या कहता है आयुर्वेद?
आयुर्वेद के अनुसार, इसके तीन प्रकार होते हैं। अमावत (संधिशोथ), संधिवात (ऑस्टियोआर्थराइटिस) और वातरक्ता (गाउटी गठिया)। प्राचीन विज्ञान का मानना है कि शरीर में घूमने वाले अतिरिक्त वात या अमा जोड़ों में जमा हो जाते हैं, जिससे सूजन पैदा होती है, जिसकी वजह से गठिया होता है।
क्या हौ अलग-अलग गठिया होने की वजह
– अमावत या रुमेटीइड गठिया अनुचित पाचन के कारण अमा नामक मेटाबाॉलिज्म अपशिष्ट के गठन का परिणाम है
– ऑस्टियोआर्थराइटिस शरीर में वात की अधिकता के कारण होता है।
– मूवमेंट की कमी, भावनात्मक तनाव और अनुचित जीवन शैली कुछ अन्य कारण हैं।
जड़ी बूटियां कर सकती हैं मदद
इसमें आहार, मालिश और रिलेक्सिंग एक्टिविटी में संशोधन शामिल है। यह किसी भी प्रकार के गठिया के प्रबंधन के लिए जोड़ में पूर्ण गति और लचीलेपन के लिए योग पर जोर देता है। अश्वगंधा, बोसवेलिया, अदरक, गुग्गुलु, शतावरी, त्रिफला और हल्दी जैसी जड़ी-बूटियां निर्धारित हैं।
गठिया से छुटकारे के लए इस तरह मैनेज करें डायट
– रोजाना खाना खाएं
– एसिडिक खाने से बचें और अपनी 755% डाय’ में अलकालाइन रखें।
– बिना पॉलिश किए लंबे दाने वाले चावल या लाल चावल, जौ औरबाजरा फायदेमंद होते हैं।
– हरा सब्जियां, लौकी, करेला और सहजन अच्छे ऑप्शन हैं। इसके अलावा भिंडी, फूलगोभी, रतालू, कटहल और टमाटर जैसी सब्जियों से परहेज करें।
– सेब, पपीता और अमरूद जैसे ताजे फल शामिल करें। वहीं सूखे अंगूर और अंजीर को रात भर भिगोकर रख दें और सुबह खा लें।