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 मां…इतना पैसा कमाऊंगा कि सोचोगी रखूं कहां, निषाद के बचपन की कहानी; आंखों में ले आएगी पानी

मां… मेरी चिंता मत करो। इतना पैसा कमाऊंगा कि सोचोगी कि रखूं कहां। जब निषाद आठ साल के थे। उस समय घर में मां मवेशियों के लिए चारा काट रही थीं। बेटा वहां आया और मशीन में चारा डालने लगा। इस दौरान मशीन में हाथ आने के कारण कट गया। इस घटना का जिक्र करते हुए निषाद की मां पुष्पा देवी ने बताया कि घटना के बाद यह सोचकर परेशान हो जाता थी कि इसका गुजारा कैसे होगा। अपने जीते जी तो इस पर कोई आंच नहीं आने देंगे, लेकिन हमारे बाद बेटे का क्या होगा। इस पर एक बार निषाद ने कहा था कि मां मेरी चिंता मत करो। इतना पैसा कमाऊंगा कि सोचोगी कि पैसा कहां रखूं। बेटे ने अपनी मेहनत से वो कर दिखाया। जब पहली बार बेटे को अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए दुबई जाना था तो ढाई लाख रुपये कर्ज लिया। स्थानीय लोगों की सहायता से उसे दुबई भेजा था।

मलाल : सरकार न तो उचित पुरस्कार राशि दे पाई न नौकरी
मां पुष्पा ने कहा कि एशियन चैंपियनशिप में गोल्ड और अन्य प्रतियोगिताओं में मेडल के बावजूद उसे न तो उन प्रतियोगिता में जीतने पर प्रदेश की तरफ से मिलने वाली पुरस्कार राशि मिल पाई है और न ही अब तक सरकार उसकी उपलब्धि के मुताबिक नौकरी ही उपलब्ध करवा पाई है। निषाद की बहन रमा देवी ने बताया कि भाई साल भर में गिनती के दिन ही घर आ पाता है। सारा वक्त अभ्यास शिविरों में ही निकल जाता है। बताते चलें कि निषाद कुमार ने टोक्यो पैरालंपिक प्रतियोगिता में ऊंची कूद में रजत पदक जीतकर जो इतिहास रचा था। उसको दोहराते हुए रविवार को दोबारा से देश को रजत पदक दिलवा दिया।

हादसे को निषाद नहीं माना मुकद्दर
एक हादसा जो किसी भी साधारण आदमी के हौंसले को पस्त कर सकता है। उस हादसे को एक गरीब किसान के बेटे ने मुकद्दर नहीं माना। बल्कि मेहनत और लगन से वो मुकाम हासिल किया। जो बस कहानियों जैसा लगता है। ऊना के उपमंडल अंब के बदाऊं के रहने वाले निषाद ने बचपन के एक हादसे के बाद टूटकर बिखरने के बजाय एक कस्बे के सरकारी स्कूल से शुरु हुए अपने खेलों के सफर को ओलंपिक के विक्ट्री पोडियम तक पहुंचा दिया। परिवार का इकलौता बेटा होने के कारण उसका हाथ कट जाना परिवार के लिए किसी सदमें से कम नहीं था। निषाद ने अपना ध्यान खेलों की तरफ केंद्रित किया और इसके लिए गरीबी के बावजूद खेलों में उच्च स्तरीय प्रशिक्षण के लिए जमा दो कक्षा की पढ़ाई के बाद वह पंचकूला के ताऊ देवीलाल स्टेडियम में पहुंच गए। कोच नसीम अहमद ने उसकी प्रतिभा को पहचाना और उसकी खेल प्रतिभा को तराशा। परिवार में गरीबी के हालात थे। पिता ने खेतों में सब्जियां उगाकर बेची और माता ने मवेशियों का दूध बेचा। जिससे वह बेटे के प्रशिक्षण में खर्च के लिए सहयोग दे पाएं, लेकिन निषाद ने भी उन्हें निराश नहीं किया। टोक्यो पैरालंपिक में रजत पदक जीतने के साथ ही इनामों की बरसात ने आज करोड़पति बना दिया।

सेना में जाने का था सपना
भारतीय सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करना निषाद का सपना था। पटियाला में कोच नसीम अहमद की निगरानी में निषाद ने प्रशिक्षण लेकर आज इस मुकाम पर पहुंचे हैं। उन्होंने ओलंपिक स्वर्ण विजेता नीरज चोपड़ा और विक्रम चौधरी को भी कोचिंग दी थी। बहन ने बताया कि निषाद का स्वागत धूमधाम से किया जाएगा। देश पहुंचने पर वह सबसे पहले खेल मंत्री से मुलाकात करेंगे और फिर चंडीगढ़ या मैहतपुर से घर आएंगे। उन्होंने कहा कि निषाद ने गोल्ड मेडल के लिए पूरी तैयारी की थी। हालांकि, बीच में आई इंजरी और डेंगू की चपेट में आने के बावजूद रजत पदक जीता।

निषाद की सफलता पर सबको नाज, सीएम-डिप्टी सीएम ने दी बधाई
सफलता पर हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू और उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने बधाई दी। कहा कि यह प्रदेश के लिए गर्व का क्षण है। निषाद ने अपनी अद्भुत प्रतिभा और खेल के प्रति समर्पण से यह सिद्ध कर दिया है कि कठिन परिश्रम और दृढ़ संकल्प से कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है। उनकी यह उपलब्धि प्रदेश के युवाओं को प्रेरणा देने वाली है। ऊना के उपायुक्त जतिन लाल सहित पूरे प्रशासनिक अमले ने निषाद कुमार की उपलब्धि पर प्रसन्नता जताते हुए कहा कि उनकी जीत से हर ऊना वासी गर्व महसूस कर रहा है। सोशल मीडिया पर भी निषाद की इस उपलब्धि को लेकर उन्हें खूब सराहा जा रहा है।

कोई भी बाधा हमारे सपनों के सामने टिक नहीं सकती: अग्निहोत्री
उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने भी निषाद कुमार की इस उपलब्धि पर हर्ष जताते हुए अपने फेसबुक पेज पर लिखा कि निषाद कुमार ने पेरिस पैरालंपिक में ऊंची कूद स्पर्धा में रजत पदक जीतकर पूरे देश को गौरवान्वित किया है। उनकी यह सफलता हमें सिखाती है कि कोई भी बाधा हमारे सपनों के सामने टिक नहीं सकती। उन्होंने निषाद को बधाई देते हुए उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की।

सिंथेटिक ट्रैक पर पैरों में तिरंगे का स्टिकर दिखा तो निषाद ने हटाया
पेरिस में सिल्वर के लिए छलांग से पूर्व निषाद का देश के तिरंगे झंडे के प्रति अद्वितीय सम्मान का प्रमाण भी दिखा। जिसे देखकर हर देशवासी का सिर गर्व से ऊंचा होगा। रविवार को पैरालंपिक का प्रसारण चला हुआ था। इस बीच निषाद कुमार का हाई जंप मुकाबला शुरू होना था। इतने में मैदान पर अपने शिविर में बैठे निषाद कुमार जैसे ही अपनी ऊंची कूद की बारी के लिए बढ़े तो उन्होंने रास्ते में सिंथेटिक ट्रैक पर तीन रंग के बीच लगे स्टिकर को चस्पा देखा। ट्रैक पर एथलीट के गुजरने पर यह स्टिकर पैरों के नीचे आ रहे थे। हालांकि वहां पर विभिन्न देशों के स्टिकर लगे हुए थे, लेकिन भारतीय होने के नाते संस्कारों का उदाहरण देते हुए निषाद कुमार ने सिंथेटिक ट्रैक पर गुजरते समय तिरंगे को दर्शा रहे स्टिकर को पैरों के नीचे आने से पूर्व झुक कर वहां से हटा दिया। इसके बाद स्टिकर को सम्मानपूर्वक हाथों में लेकर सिंथेटिक ट्रैक के एक छोर की ओर जाकर रखा। इस बीच पूरा मैदान में तालियों की गड़गड़ाहट शुरू हो गई।

निषाद कुमार परिचय
निषाद कुमार का जन्म 3 अक्तूबर 1999 को बदाऊं में हुआ। प्राथमिक और मिडिल स्कूल तक की शिक्षा स्थानीय विद्यालय में प्राप्त की जमा दो कक्षा की पढ़ाई 2017 में जमा दो कक्षा की पढ़ाई राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय अंब से की। इसके बाद ताऊ देवीलाल स्टेडियम चले गए। जहां कोच नसीम अहमद ने उनकी प्रतिभा को पहचानते हुए स्टेडियम में रहने का प्रबंध किया और साथ ही अपनी तरफ से खर्च भी वहन किया। इसके बाद अपनी पढ़ाई को भी जारी रखते हुए लवली यूनिवर्सिटी जालंधर से बीए की परीक्षा पास की।

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