आईसीएमआर गोरखपुर ऐसी दवा की खोज में जुटा है, जो मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों पर नियंत्रण के लिए अचूक हो। इसके लिए आईसीएमआर की टीम लगातार सोनभद्र में डटी हुई है।
अलग-अलग गांवों में जाकर वहां मच्छर पनपने के कारणों, उनके लार्वा और इंसान पर उसके असर का सैंपल जुटा रही है। लैब में इसके अध्ययन के बाद कोई ठोस नतीजा निकलेगा। इस शोध को मलेरिया के उपचार और मच्छरों के नियंत्रण के लिए काफी अहम माना जा रहा है।
सोनभद्र प्रदेश का सबसे ज्यादा वन क्षेत्र वाला जिला है। यहां आदिवासी आबादी भी सबसे अधिक है। जंगल, पहाड़ और जलाशयों के कारण यहां मलेरिया के मामले भी प्रदेश में सबसे ज्यादा रहते हैं। अमूमन हर साल मलेरिया के प्रकोप से यहां मौत भी होती है। इस लिहाज से जिले को मलेरिया और मच्छर जनित बीमारियों के लिए अति संवेदनशील श्रेणी में रखा गया है। इसमें भी म्योरपुर, चोपन और नगवां ब्लॉक के गांव सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।
इन इलाकों में मच्छरों का प्रकोप रोकने के लिए एंटी लार्वा सहित अन्य दवाओं के छिड़काव पर मोटी रकम खर्च होती है, इसके बावजूद कोई विशेष असर नहीं होता। ऐसे में इसका स्थायी समाधान खोजने की कोशिश की जा रही है। इसका जिम्मा इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की गोरखपुर इकाई को सौंपा गया है।
आईसीएमआर की टीम लगातार क्षेत्र में भ्रमण कर इसके कारणों और समाधान पर अध्ययन करने में जुटी है। हाल ही में जिले में आई टीम ने संभावित क्षेत्रों में जाकर पानी के सैंपल लिए थे। वहां के रहवासियों के वजन, ऊंचाई, बीपी की जांच की। उनके ब्लड का सैंपल भी एकत्रित किया था।
अलग-अलग आयु वर्ग के लोगों से लिए सैंपल की लैब में जांच कर वैज्ञानिक जल्द किसी ठोस नतीजे पर पहुंचेंगे। इससे पहले फरवरी और मई में भी टीम आई थी। तब उन्होंने हॉट स्पॉट चिह्नित किया था। इस बार बारिश के मौसम में टीम ने सभी हॉट स्पॉट से सैंपल एकत्रित किया है। अभी टीम को अक्तूबर में फिर आना है। सर्दी के मौसम में मच्छरों की प्रकृति, व्यवहार और प्रजनन पर टीम काम करेगी।
क्या बोले अधिकारी
सोनभद्र में मलेरिया के मामले सबसे ज्यादा हैं। अध्ययन में यह देखा जा रहा है कि मलेरिया के लिए कौन सा मच्छर ज्यादा प्रभावी है, वह लोगों पर कितना असर छोड़ता है, उसे पनपने के कारण और संभावनाएं क्या हैं। साथ ही उस पर कौन सी दवा सबसे असरदार होगी। इन सभी बिंदुओं पर अध्ययन चल रहा है। हर गांव से 70-80 लोगों का सैंपल लिया गया है। इसका विश्लेषण कर ठोस नतीजे दिए जाएंगे। -डॉ. गौरव राज द्विवेदी, वरिष्ठ वैज्ञानिक, आईसीएमआर गोरखपुर