एमसीडी के मनोनीत पार्षदों पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद स्थायी समिति व 12 वार्ड समितियों के चुनाव कराने का रास्ता साफ हो गया है। निगम सचिव कार्यालय आने वाले दिनों में इसकी प्रक्रिया शुरू करेगा। अभी निगम को अदालत के फैसले की कॉपी मिलने का इंतजार है।
नियम के हिसाब से अदालत का आदेश पहले एमसीडी के विधि विभाग को मिलेगा। आदेश के सभी पक्षों का आकलन कर विभाग इसकी रिपोर्ट आयुक्त को भेजेगा। फिर, इस रिपोर्ट को निगम सचिव के पास भेजा जाएगा। इसके बाद निगम सचिव कार्यालय वार्ड समितियों के चुनाव कराने की पहल शुरू करेगा।
सूत्र बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव कराने पर कोई रोक नहीं लगाई है। इस तरह वार्ड समितियों के चुनाव कराने के लिए निगम सचिव कार्यालय सबसे पहले तिथि तय करने के लिए आयुक्त और उसके बाद पीठासीन अधिकारी नियुक्त करने के लिए मेयर के पास फाइल भेजेगा। मेयर की ओर से पीठासीन अधिकारी नियुक्त करने के बाद ही वार्ड समितियों के चुनाव होंगे। प्रत्येक वार्ड समिति में उसका एक अध्यक्ष व एक उपाध्यक्ष के अलावा स्थायी समिति का एक सदस्य चुनने का प्रावधान है।
जल्द शुरू हो सकती है समितियों के चुनाव की प्रक्रिया
वार्ड समितियों के चुनाव होने के बाद सदन से चुने जाने वाले छह सदस्यों में से रिक्त एक सदस्य के चुनाव की प्रक्रिया शुरू होगी। इसका चुनाव सितंबर माह में होने की संभावना है। निगम सचिव कार्यालय वार्ड समितियों के चुनाव होने के बाद इस सदस्य का चुनाव कराने पर विचार कर रहा है। इसके बाद स्थायी समिति का चुनाव कराने की प्रक्रिया शुरू होगी। स्थायी समिति के चुनाव में उसका अध्यक्ष व उपाध्यक्ष चुना जाता है।
बता दें कि एमसीडी के चुनाव दिसंबर 2022 में होने के बाद उपराज्यपाल ने 10 व्यक्तियों को उसमें पार्षद मनोनीत किया था। दिल्ली सरकार ने उपराज्यपाल के इस कदम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी। दिल्ली सरकार ने तर्क दिया है कि एमसीडी में दिल्ली सरकार की सिफारिश पर पार्षद मनोनीत किए जाते रहे है, मगर इस बार उसकी सिफारिश के बजाए उपराज्यपाल ने स्वयं पार्षद मनोनीत कर दिए। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार की याचिका पर सुनवाई करने के बाद गत वर्ष 17 मई को आदेश को सुरक्षित रख लिया था। इस कारण एमसीडी की वार्ड समितियों व स्थायी समिति के चुनाव नहीं हो पा रहे थे।
मनोनीत पार्षद भी करेंगे वोटिंग
एमसीडी में मनोनीत होने वाले 10 पार्षदों को सदन में मतदान करने का अधिकार नहीं है, मगर मनोनीत पार्षदों की ओर से वर्ष 2014 में दायर एक याचिका की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने उनको वार्ड समितियों में मतदान करने का अधिकार दे दिया था। इतना ही नहीं, उनको वार्ड समितियों में उपाध्यक्ष के साथ-साथ उनमें से स्थायी समिति का सदस्य बनने का भी अधिकार दिया था।
बड़ी योजनाओं को अमलीजामा पहनाने का कार्य ठप पड़ा
बीते डेढ़ साल से स्थायी समिति का चुनाव न होने से एमसीडी का बुरी तरह कामकाज प्रभावित हो चुका है। खासतौर पर बड़ी योजनाओं को अमलीजामा पहनाने का कार्य ठप पड़ा हुआ है। दरअसल एमसीडी में वित्तीय अधिकारों के साथ-साथ सबसे अधिक अधिकार स्थायी समिति के पास होते हैं। उसकी ओर से पास किए जाने वाली बहुत सी योजनाएं सदन में भी भेजने का प्रावधान नहीं है।
वित्तीय मामलों के साथ-साथ विकास कार्यों से जुड़ी योजनाएं और बिल्डिंग बनाने का ले-आउट प्लान पास करने का अधिकार उसके पास ही है मगर स्थायी समिति का गठन न होने के कारण एमसीडी की कई बड़ी योेजनाएं अधर में लटकी हुई थीं। कई योजनाओें के तो टेंडर भी रद्द करने पड़े हैं। वहीं स्थायी समिति के अध्यक्ष का प्रतिवर्ष करीब 10 करोड़ रुपये फंड भी खर्च नहीं हो पा रहा है।
दूसरी ओर, वार्ड समितियों का गठन न होने से पार्षद अपने इलाके की छोटी-छोटी समस्या भी दूर नहीं करा पा रहे थे। दरअसल वार्ड समितियों की प्रति सप्ताह बैठक करने का प्रावधान है। इस दौरान जोनल अधिकारी बैठक में शामिल होते हैं। पार्षद उनके समक्ष अपने इलाके की समस्याएं रखते हैं। इसके अलावा गली-नाली, सड़क आदि बनाने के टेंडर तैयार कराने का आदेश देते हैं, मगर वार्ड समिति गठित न होने के कारण वह काफी परेशान हैं।
आप के लिए अब आसान नहीं रहेगा समितियों के चुनाव लटकाना
सुप्रीम कोर्ट की ओर से मनोनीत पार्षदों के संबंध में स्थिति साफ करने के बाद अब एमसीडी में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के लिए स्थायी समिति व 12 वार्ड समितियों के चुनाव लटकाना आसान नहीं होगा। सभी समितियां वैधानिक समितियां हैं। इनकी एमसीडी के कामकाज में अहम भूमिका रहती है। इसके साथ ही शिक्षा समिति व ग्रामीण समिति का भी चुनाव होगा। यह दोनों समितियों को भी वैधानिक समिति दर्जा प्राप्त है।
एमसीडी के मामलों के विशेषज्ञ ओपी शर्मा के अनुसार, वैधानिक समितियों का चुनाव नहीं कराना गैरकानूनी होगा। इनके अस्तित्व में न होने से एमसीडी के कामकाज पर भी प्रभाव पड़ता है। लिहाजा इन समितियों के चुनाव न कराने की स्थिति में एमसीडी को भंग भी किया जा सकता है। ऐसी ही वजहों से पहले तीन बार एमसीडी भंग हो चुकी है। एमसीडी में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी पिछले डेढ़ साल से मनोनीत पार्षदों का मामला सुप्रीम कोर्ट में होने का हवाला देते हुए समस्त वार्ड समितियों के साथ-साथ स्थायी समिति के चुनाव नहीं करा रही थी। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इन समितियों के चुनाव कराने पर रोक नहीं लगाई थी।
संजय सिंह ने फैसले को बताया दुर्भाग्यपूर्ण
दिल्ली नगर निगम में एल्डरमैन मनोनीत करने का एकाधिकार एलजी को देने के फैसले पर आम आदमी पार्टी ने असहमति जताई है। सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय पर अपना फैसला दिया।
इस मामले में आप सांसद संजय सिंह ने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार को बाइपास कर सारे अधिकार एलजी को दिए जा रहे हैं। इस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जजों की टिप्पणी फैसले के विपरीत थी। देश के अन्य राज्यों में भी राज्यपाल एल्डरमैन का मनोनयन करते हैं, लेकिन वे चुनी हुई सरकार की अनुशंसा पर ही करते हैं। दिल्ली में भी एक चुनी हुई सरकार है, तो फिर दिल्ली में ऐसा क्यों नहीं है। यह भारत के लोकतंत्र के लिए एक बहुत बड़ा झटका है। उन्होंने दावा किया कि आम आदमी पार्टी आगामी स्टैंडिंग कमेटी के चुनाव में जीतेगी।
केंद्र उद्योगपतियों को देना चाहता है वक्फ बोर्ड की जमीन
सांसद ने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि वक्फ बोर्ड की जमीन अपने उद्योगपतियों को देना चाहती है। उन्होंने कहा कि बोर्ड की संपत्ति से जुड़े कानून में देखना होगा कि इसमें क्या-क्या होंगी। केंद्र सरकार ने अयोध्या में सेना की जमीन पर कब्जा करके अपने उद्योगपतियों को दे दी। केंद्र सरकार ने पोर्ट, एयरपोर्ट, रेल, सेल सब उद्योगपति को दिया।
‘डीएमसी एक्ट की सांविधानिक व्यवस्थाएं साफ’
प्रदेश भाजपा ने एल्डरमैन की नियुक्ति को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत किया है। कहा कि इस निर्णय से संशोधित दिल्ली नगर निगम एक्ट की सांविधानिक व्यवस्थाएं साफ हो गई हैं। भाजपा ने यह भी कहा कि आप 2013 से दिल्ली की सत्ता में है, बावजूद सांविधानिक व्यवस्थाओं को समझते हुए भी स्वीकारने को तैयार नहीं है। अब वार्ड व स्थायी समिति का चुनाव संभव हो सकेगा।
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने कहा कि दिल्ली में एल्डरमैन की व्यवस्था कोई आज की व्यवस्था नहीं है, यह वर्षों से चली आ रही है। उपराज्यपाल को संविधान के माध्यम से जो अधिकार मिले हैं, उसे आम आदमी पार्टी लगातार खत्म करने की कोशिश कर रही है।
अदालत के इस फैसले से संशोधित दिल्ली नगर निगम एक्ट की सांविधानिक व्यवस्थाएं साफ हुई हैं। सचदेवा ने मीडिया से बातचीत में कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर सांसद संजय सिंह की प्रतिक्रिया उनकी हताशा का प्रमाण है। भाजपा उनके बयान की कड़ी निंदा करती है। उन्होंने यह भी कहा कि संजय सिंह सात साल से सांसद हैं। उनको इस बात की जानकारी है कि कौन से क्षेत्र किसके अधिकार क्षेत्र में आते हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाना निंदनीय है।
वहीं, भाजपा नेता प्रवीण शंकर कपूर ने कहा कि आशा है कि अब आम आदमी पार्टी नगर निगम की वार्ड समितियों एवं स्थायी समिति का चुनाव होने देगी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाना निंदनीय है।
मनोनीत पार्षदों के दम पर भाजपा हुई मजबूत
भाजपा को मनोनीत पार्षदों के कारण वार्ड समितियों के साथ स्थायी समिति में भी मजबूती मिलेगी। भाजपा 12 वार्ड समितियों में से सात में अच्छी स्थिति में है। स्थायी समिति में भी उसकी दावेदारी मजबूत रहेगी, जबकि मनोनीत पार्षद के बिना वह केवल चार वार्ड समितियों में ही मजबूत स्थिति में थी। स्थायी समिति में भी वह आप से काफी पीछे थी। उपराज्यपाल की ओर से पार्षद मनोनीत न करने की स्थिति में स्थायी समिति के 18 सदस्यों में भाजपा के मात्र सात सदस्य ही चुने जा सकते थे जबकि आप के 11 सदस्य होते, मगर भाजपा मनोनीत पार्षदों के दम पर स्थायी समिति व वार्ड समितियों में आप के समक्ष खड़ी हो गई है।