Wednesday , May 8 2024

चौथे लोकसभा चुनाव में पहली बार दिल्ली ने भरा था सात सीटों का दम…

चौथे लोकसभा चुनावों में दिल्ली ने पहली बार संसद के भीतर सात का दम भरा। वर्ष 1967 में राजधानी से सात सांसद लोकसभा में पहुंचे थे। इससे पहले आजादी के बाद 1952 के संसदीय चुनावों में यहां सिर्फ तीन सीटें थीं, लेकिन सांसद चार चुने गए थे। इसके बाद अगले चुनावों में सीटों की संख्या बढ़ाई गई। वहीं, भारतीय लोकतंत्र का पहला चुनाव होने के बाद भी 1952 में दिल्लीवालों ने मतदान में पूरी दिलचस्पी दिखाई थी। इसमें करीब 57.09 फीसदी मतदान हुआ था।

रोचक आंकड़ों से भरा दिल्ली के संसदीय चुनावों का इतिहास दिलचस्प है। पहली लोकसभा में यहां नई दिल्ली, बाहरी दिल्ली और दिल्ली शहर नाम की सीटें थीं। बाहरी दिल्ली सीट से दो सांसद चुने गए थे। इनमें से एक सीट के मतदाताओं को अनुसूचित जाति वर्ग का सांसद चुनने का अधिकार था। वहीं, शेष दो सीटों पर एक-एक सांसद ही चुने जाते थे। चुनाव की यह व्यवस्था 1962 तक कायम रही।

खास बात यह कि पहले चुनाव में ही कांग्रेस नई दिल्ली सीट से हार गई थी। कांग्रेस उम्मीदवार मनमोहन सहगल को किसान मजदूर प्रजा पार्टी की सुचेता कृपलानी ने करारी शिकस्त दी थी। इसी चुनाव में दिल्ली के गांधी के नाम से मशहूर सीके नायर बाहरी दिल्ली से सांसद चुने गए थे। 1956 में चांदनी चौक को संसदीय क्षेत्र का अस्तित्व मिला था। दूसरे चुनाव में ही दिल्ली शहर सीट का विभाजन किया गया।

इससे दो सीटें चांदनी चौक व दिल्ली सदर बनीं। 1962 के चुनाव में बाहरी दिल्ली व नई दिल्ली से कुछ-कुछ हिस्से मिलाकर पांचवीं सीट करोल बाग बनी। 1967 के परिसीमन में एक बार फिर बदलाव हुआ। इससे सीटों की संख्या सात हो गई। इसमें बाहरी दिल्ली और नई दिल्ली के कुछ-कुछ हिस्से काटकर दो सीटें बनाई गईं जिन्हें आज की दक्षिणी दिल्ली और पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट कहा जाता है।

तीन सीटों के बदले नाम
2002 के परिसीमन आयोग ने सीटों के क्षेत्रों में कुछ-कुछ बदलाव किया। इससे सीट बढ़ाने पर लगी सांविधानिक बंदिश से सीटें नहीं बढ़ी। इसकी जगह तत्कालीन तीन सीटों का नाम बदला गया और तीन नई सीटें बनीं। यह उत्तर पूर्वी, पश्चिमी व उत्तर पश्चिमी दिल्ली संसदीय क्षेत्र हैं। इसमें से उत्तर पश्चिम दिल्ली लोकसभा सीट दिल्ली की सात सीटों में से इकलौती आरक्षित सीट है।

5वीं लोकसभा में सबसे ज्यादा मत प्रतिशत
दिल्ली का वोटिंग पैटर्न भी दिलचस्प है। चार मौके ऐसे रहे हैं, जब राजधानी के चुनाव में मतदान प्रतिशत बढ़ा है। अभी तक का सबसे ज्यादा मतदान 5वीं लोकसभा में हुआ। मतदान का प्रतिशत 75.08 था। जानकार बताते हैं कि पाकिस्तान विजय के बाद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के करिश्माई नेतृत्व को वोट देने दिल्ली घर से बाहर निकली। दूसरी तरफ भाजपा के राममंदिर आंदोलन की शुरुआती दौर में 1991 में जो चुनाव हुआ, उसमें दिल्ली के आधे से ज्यादा ने लोगों ने वोट नहीं किया। इस दौरान वोटिंग प्रतिशत सिर्फ 48.52 प्रतिशत रहा। दिल्ली के संसदीय चुनावों के इतिहास में अभी तक का यह सबसे कम वोटिंग प्रतिशत वाला चुनाव साबित हुआ।

कब कितना मतदान/वर्ष मतदान

  • 1952-57.09 प्रतिशत
  • 1957-57.08 प्रतिशत
  • 1962-68.08 प्रतिशत
  • 1967-69.05 प्रतिशत
  • 1971-75.08 प्रतिशत
  • 1977-71.05 प्रतिशत
  • 1980-64.09 प्रतिशत
  • 1984-64.05 प्रतिशत
  • 1989-54.05 प्रतिशत
  • 1991-48.52 प्रतिशत
  • 1996-50.62 प्रतिशत
  • 1998-51.29 प्रतिशत
  • 1999-43.54 प्रतिशत
  • 2004-47.09 प्रतिशत
  • 2009-51.85 प्रतिशत
  • 2014–65 प्रतिशत
  • 2019–60.50 प्रतिशत

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com