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दिवाली 2023: 12 या 13 नवंबर को मनाएं दिवाली, पढ़े पूरी ख़बर

दिवाली 2023: दीपोत्सव का पर्व इस बार पांच नहीं छह दिन का होगा। इस उत्सव की शुरुआत आज धनतेरस से हो रही है। दिवाली का त्योहार कार्तिक अमावस्या को मनाया जाता है, लेकिन इस साल दिवाली की तारीख को लेकर असमंजस की स्थिति है। 

दिवाली पर्व धनतेरस से शुरू होकर भाई दूज पर संपन्न होता है। हर एक दिन खास और विशेष महत्व लिए है। इस बार दिवाली पर्व में पांच उत्सव होंगे लेकिन दिवाली छह दिनों की है। तिथियों में भुगत भोग्य यानी घटने-बढ़ने के कारण पर्व छह दिनों तक चलेगा। शुरुआत 10 नवंबर को धनतेरस से होगी। 11 को रूप चतुर्दशी, 12 को दिवाली, 14 को गोवर्धन पूजा और 15 को भाई दूज मनाया जाएगा।

धनतेरस आज
कार्तिक माह कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धन त्रयोदशी या धनतेरस कहा जाता है इस दिन भगवान धन्वंतरि, कुबेर देव के साथ गणेश और लक्ष्मी जी की पूजा का विधान है। धनतेरस को भगवान धन्वंतरि का अवतार हुआ था। सृष्टि के सर्वप्रथम चिकित्सक होने के कारण इन्हें चिकित्सकों का आराध्य देव माना जाता है। भगवान धन्वंतरि समुद्र मंथन के समय सभी औषधीय को लेकर प्रकट हुए थे इसलिए उन्हें प्रकृति में व्याप्त समस्त औषधीय का संपूर्ण ज्ञान है। इस दिन स्वर्ण या चांदी का सिक्का, गहने इलेक्ट्रॉनिक का सामान पीतल या अन्य धातुओं के बर्तन आदि खरीदना शुभ माना जाता है।

रूप चतुर्दशी या नरक चौदस (11 नवंबर)
ऐसी मान्यता है कि लक्ष्मी जी की बड़ी बहन अलक्ष्मी इस दिन प्रकट हुई थी। इस दिन सुबह तेल की मालिश करके स्नान करना शुभ बताया गया है, इससे अलक्ष्मी का प्रभाव नहीं पड़ता है और दरिद्रता दूर रहती है। छोटी दीपावली के दिन हनुमान जी की पूजा भी बड़े मनोयोग से की जाती है। इस दिन हनुमान जी को सिंदूर का चोला चढ़ाकर चूर में या आटे से बने मीठे खाद्य पदार्थ का भोग लगाया जाता है। इससे वह प्रसन्न होते हैं और अप्रत्यक्ष कष्ट का निवारण कर देते हैं। इस दिन शाम को 7 या 11 दीपक घर के मुख्य द्वार के बाहर जलाने चाहिए।

दिवाली (12 नवंबर)
धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी का इसी दिन समुद्र मंथन से प्राकट्य हुआ था। यह कार्तिक मास की अमावस्या को मनाई जाती है। रात 12 बजे से प्रातःकाल तक का समय महानिशा काल कहलाता है। इस दिन लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु गणपति, सरस्वती, हनुमान जी का पूजन करना चाहिए। दिवाली की पूजा हमेशा स्थिर लग्न में करनी चाहिए। चार स्थिर लग्न के अलावा भी दो अन्य लग्न ऐसे हैं जिनमें पूजा की जा सकती है।

शुभू मुहूर्त 
प्रातःकाल 7:20 से 9:37 तक वृश्चिक लग्न
दोपहर 1:24 से 2:55 तक कुंभ लग्न
शाम को 6 बजे से 7:57 तक वृषभ लग्न। इस समय सभी लोगों को घरों में पूजा करनी चाहिए।
शाम 7:57 बजे से रात 10:10 तक भी घरों में पूजा कर सकते हैं।
अंतिम शुभ मुहूर्त अर्धरात्रि में 12:28 से लेकर 2:45 तक सिंह लग्न में है। जिन लोगों की पूजा किसी कारण से रह जाए वो अंतिम मुहूर्त में भी पूजन कर सकते हैं।

गोवर्धन पूजा (14 नवंबर)
गोवर्धन पूजा हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाते हैं। इस दिन गोवर्धन पर्वत, भगवान श्रीकृष्ण और गोमाता की पूजा करने का विधान है। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने देवताओं के राजा इंद्र के अहंकार को नष्ट किया था। इस दिन मंदिरों के अलावा कॉलोनी आदि में गाय के गोबर से गोवर्धन भगवान के बड़े सुंदर प्रतिरूप बनाकर पूजा की जाती है।

भाई दूज (15 नवंबर)
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को हर वर्ष भाई दूज के रूप में मानते हैं। इस पर्व को सबसे पहले यमुना जी ने अपने भाई यमराज को तिलक किया था इससे प्रसन्न होकर यमराज ने यमुना को उपहार स्वरूप यह वचन दिया था कि वर्ष में एक बार मैं आपके पास अवश्य आऊंगा। जो भाई अपनी बहन से इस दिन तिलक करवाएगा, साथ में यमुना नदी में स्नान करेंगे उनको अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा।

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