सपा हर लोकसभा क्षेत्र में मैनपुरी मॉडल अपनाएगी। इसके तहत लोकसभा क्षेत्रवार 10-10 युवाओं की कोर कमेटी बनाई जाएगी। यह कमेटी सीधे प्रत्याशी और प्रदेश मुख्यालय को रिपोर्ट करेगी। कोर कमेटी से जुडे युवा बूथवार खुफिया रिपोर्ट तैयार करेंगे। इसे लेकर दो दिन पहले सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव युवा फ्रटंल संगठनों की बैठक कर चुके हैं। उम्मीद है कि फ्रंटल संगठनों के पदाधिकारियों की घोषणा होते ही मैनपुरी मॉडल को धरातल पर उतारने की कवायद शुरू कर दी जाएगी।
पार्टी प्रदेश की सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान कर चुकी है। सपा का रालोद, अपना दल (कमेरावादी) और जनवादी पार्टी से गठबंधन है। कई अन्य छोटे-छोटे संगठन भी जुड़े हैं। सपा की रणनीति है कि वह लोकसभा चुनाव में जातीय जनाधार वाले संगठनों को जोड़कर अपना वोटबैंक बढ़ाए। ऐसे में कुछ सीटों पर साइकिल निशान पर ही दूसरे दल के नेता सियासी मैदान में उतर सकते हैं। दो दिन पहले पार्टी कार्यालय में युवा फ्रंटल संगठनों की बैठक में कई उन बूथों के आंकड़े पेश किए गए, जहां सपा शुरुआती दौर में काफी पीछे थी, लेकिन मैनपुरी में नए प्रयोग से वहां 80 फीसदी से ज्यादा वोट मिले। इस आधार पर अखिलेश ने इस तरह का प्रयोग सभी लोकसभा क्षेत्रों में करने का निर्देश दिया है।
हर फ्रंटल संगठन के पदाधिकारी होंगे शामिल
कोर कमेटी स्वतंत्र रूप से कार्य करेगी। वह सिर्फ खुफिया सूचनाएं जुटाएगी। कोर कमेटी में हर फ्रंटल संगठन के दो से तीन पदाधिकारी शामिल होंगे। इसमें यह देखा जाएगा कि वह संबंधित क्षेत्र का हो अथवा आसपास का। ताकि लोकसभा क्षेत्र की भौगोलिक, जातीय समीकरण और नेताओं की पकड़ से वाकिफ हो। लोकसभा क्षेत्र स्तर पर बनने वाली कोर कमेटी के साथ बूथ कमेटी जुड़ेगी। बूथ कमेटी में भी फ्रंटल संगठन के पदाधिकारी रहेंगे। खास बात यह है कि इस कमेटी का पार्टी संगठन की ओर से बनने वाली बूथ कमेटी से कोई जुड़ाव नहीं होगा। वह अपने स्तर पर कार्य करेगी।
ये है मैनपुरी मॉडल
मैनपुरी लोकसभा उप चुनाव के दौरान सपा ने लोहिया वाहिनी, युवजन सभा, मुलायम सिंह यादव यूथ ब्रिगेड और छात्र सभा के पदाधिकारियों की कोर कमेटी बनाई थी। इस कमेटी से बूथवार टीमें जोड़ी गईं। यह टीम चुनाव प्रचार करने के बजाय सामान्य लोगों की तरह गांवों में भ्रमण कर खुफिया रिपोर्ट तैयार की। इसमें लोगों की नाराजगी की वजह जानी गई। जहां जिस भी तरह की शिकायतें मिलीं, उसका तत्काल निस्तारण किया गया। किस बूथ पर संबंधित बिरादरी के किस नेता की ज्यादा स्वीकार्यता हो सकती है, इसका आकलन किया गया और संबंधित नेता को वहां के मतदाताओं के बीच भेजा गया। जहां धर्मेंद्र यादव या तेज प्रताप की मांग हुई, वहां वह गए और जहां अखिलेश का जाना जरूरी लगा, वहां वह खुद पहुंचे। ऐसे में जिन बूथों पर पहले कम वोट मिलने की आशंका थी, वहां भरपूर वोट मिले। अब यही प्रयोग लोकसभा चुनाव में अपनाने की तैयारी है।