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दिल्ली के विकास के लिए नया मास्टर प्लान हुआ तैयार, जानें क्या है ख़ास ..

अगले 20 वर्ष की दिल्ली के लिए नया मास्टर प्लान-2041 तो बन गया, जल्द ही अधिसूचित भी हो जाएगा, लेकिन दो खंड और दस अध्याय में विभक्त इस लंबे-चौडे प्लान में भी विकास को लेकर केवल प्लानिंग ही की गई है। पुरानी कालोनियों के पुनर्विकास का इसमें जिक्र तक नहीं है। नई अनधिकृत कालोनियां न बसें, इसका तो ध्यान रखा गया है, लेकिन पुरानी अनधिकृत कालोनियों का विकास कैसे किया जाए, इसे लेकर कारगर प्लानिंग का अभाव खटकता है। ऐसा न होने की सूरत में राष्ट्रीय राजधानी का चहुंमुखी विकास कतई संभव नहीं हो सकता।

प्राकृतिक आपदाओं के लिए भी संवेदनशील है दिल्ली

राजधानी की नियमित कालोनियों में बिल्डर फ्लैट के चलन से भी आबादी कई गुणा बढ़ती जा रही है। आबादी बढ़ने व सुविधाएं सीमित रहने की वजह से सिस्मिक जोन-4 में शामिल दिल्ली प्राकृतिक आपदाओं के लिए संवेदनशील हो रही है। समस्या को दूर करने के लिए राजधानी में कई स्तरों पर प्लानिंग हुई है, री-डेवलपमेंट प्लान भी बने, लेकिन सिरे नहीं चढ़ सके। इसका सबसे बड़ा उदाहरण लैंड पुलिंग नीति है, जिसके तहत अब तक एक भी सेक्टर फाइनल नहीं हो पाया है।

कारगर साबित नहीं हुई लैंड पुलिंग नीति

अधिकारियों के अनुसार लैंड पुलिंग नीति वर्ष 2018 में अधिसूचित हुई थी, लेकिन अभी तक सफल नहीं हो सकी है। इसकी दो सबसे बड़ी बाधाएं यह हैं कि इसमें 70 प्रतिशत भू-स्वामियों का एकसाथ आना और 70 प्रतिशत जमीन एकसाथ मिलना जरूरी है। ड्राफ्ट मास्टर प्लान-2041 में एफएआर बढ़ाकर पुरानी बिल्डिंगों को री-डेवलप करने का प्लान है। इन कालोनियों में ऊंची इमारतें बनेंगी। बची जगहों पर जनसुविधाएं बढ़ाई जाएंगी। यहां पार्किंग, सड़कें, स्वास्थ्य सेवा, पार्क आदि के लिए जगह रहेगी। अगस्त 2022 में केंद्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय ने शहरी री-डेवलपमेंट में तेजी लाने के लिए दिल्ली विकास अधिनियम-1957 में बदलाव प्रस्तावित किए हैं। इसे मंजूरी मितली है तो बड़ी अड़चन दूर हो जाएगी।

आमजन का दर्द

पूर्वी दिल्ली के इंद्रप्रस्थ एक्टेंशन की कुछ हाउसिंग सोसायटी 70 और 80 के दशक में बनी थी। इन्हें री-डेवलपमेंट की जरूरत है। लोगों ने इसकी कोशिशें भी कीं, लेकिन सफल नहीं हुए। आरडब्ल्यूए संगठन ऊर्जा के अध्यक्ष अतुल गोयल के अनुसार चार-पांच दशक पुरानी कालोनियों का री-डेवलपमेंट प्लान जरूरी है । डीडीए को लोगों के साथ मिलकर नियम बनाने होंगे।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के पूर्व कमिश्नर (प्लानिंग) एके जैन बताते हैं कि नियम तो कई हैं, लेकिन उन्हें लागू करना मुश्किल हो रहा है। राजधानी की 50 प्रतिशत से अधिक बिल्डिंग लेआउट प्लान के अनुरूप नहीं हैं। गांवों में कोई रोकटोक नहीं है। वर्ष 2007 में एक समिति बनी थी, जिसने 80 प्रतिशत बिल्डिंग असुरक्षित बताई। डीडीए फ्लैट्स में भी काफी अधिक बदलाव हो रहे हैं। भवन उपनियम सख्ती से लागू हो नहीं पाते। जैन बताते हैं कि उन्होंने सुझाव दिया था कि गांव, पुरानी दिल्ली, अनधिकृत कालोनियों में 100 वर्ष पुरानी बिल्डिंगों के लिए स्ट्रक्चरल सेफ्टी सर्टिफिकेट अनिवार्य किया जाए। इनमें यदि रेट्रो-फिटिंग की जरूरत होती है, तो उसे सरकार सब्सिडाइज रेट पर करे, ताकि लोगों पर बहुत अधिक बोझ न आए।

इसके लिए पहले लोगों को छह महीने का समय दिया गया, फिर एक वर्ष का, उसके बाद दो वर्ष का और अंत में यह रद ही हो गया। यदि री-डेवलमेंट की बात की जाए, तो इसे न्यायाक प्रक्रिया में लाना होगा, ताकि राजनेताओं की दखलअंदाजी कम हो। वहीं, डीडीए के पूर्व योजना आयुक्त सब्यसाची दास ने बताया कि डीडीए एक्ट में जो बदलाव किए जा रहे हैं, वे काफी पहले हो जाने चाहिए थे। यह री-डेवलपमेंट के लिए जरूरी हैं। लेकिन, हम पहले ही इसमें लगभग दस वर्ष विलंब से चल रहे हैं।

इन बदलावों के बिना पुनर्विकास की कोई भी योजना सिरे नहीं चढ़ सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि जमीन आज सबसे बड़ी समस्या है। लोग पुनर्विकास में हिस्सा नहीं लेते हैं, इसीलिए अनधिकृत और पुराने बसे इलाकों के हालात बदतर हो रहे हैं। राजधानी में लोग वर्षों से एक ही जगह रह रहे होते हैं। वहां से उनकी भावनाएं जुड़ी होती हैं और यह उनकी कमाई का जरिया भी होता है। इसलिए सभी लोग इसके लिए तैयार नहीं होते।

इसलिए जरूरी है पुनर्विकास

राजधानी की घनी आबादी वाली कालोनियों में इस समय बिल्डर फ्लैट का चलन तेजी से फल-फूल रहा है। 50 से 200 गज जमीन पर भी चार मंजिल की इमारत में ये लोग कई फ्लैट बना देते हैं। इनमें से ज्यादातर फ्लैट का न लेआउट प्लन होता है, न गुणवत्ता जांच होती है। यह भूकंपरोधी हैं या नहीं, इसे लेकर भी कोई स्पष्टता नहीं रहती है।

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