वाराणसी के आईआईटी बीएचयू के मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग विभाग में सोमवार को दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन शुरू हुआ। सम्मेलन का आयोजन धातु कचरे के प्रबंधन और रीसाइकलिंग पर किया गया है। दुनियाभर के वैज्ञानिकों ने धातुओं के कचरे को वेस्ट नहीं वेल्थ बताया। स्कॉटलैंड के डंडी विवि की प्रो. सैंड्रा विल्सन ने बताया कि धरती में धातुओं का भंडार सीमित है इसलिए उनकी रीसाइकलिंग जरूरी है। उदाहरण देते हुए कहा कि धरती से 80 प्रतिशत सोना निकाला जा चुका है।
कहा जा रहा है कि ऐसे में रीसाइकलिंग जरूरी है। एडिनबर्ग विश्वविद्यालय स्कॉटलैंड के प्रो. जैसन लव ने कहा कि रीसाइकलिंग जैसे बहुआयामीय विषयों के लिए विभिन्न विशेषज्ञों तथा रसायन शास्त्री, मेटलर्जिस्ट, डिजाइन आदि को मिलजुल कर कार्य करने की जरूरत है। मुख्य अतिथि प्रो. रजनेश त्यागी ने बताया कि धातुकीय आभियांत्रिकीय विभाग सौ वर्षों से लगातार अपनी उत्कृष्टता कायम रखे है।
शताब्दी समारोह की सफलता की कामना करते हुए उन्होंने आशा जताई कि विभाग मेटलर्जिकल वेस्ट रीसाइक्लिंग के क्षेत्र में अपनी बढ़त बनाए रखेगा। अध्यक्षीय भाषण में प्रो आरसी गुप्ता ने विभाग के स्थापना काल से अब तक के विकास की कहानी सुनाई। दो दिवसीय समारोह में लगभग 50 वैज्ञानिकों के शोध पत्र प्रस्तुत किये जाएंगे। अतिथियों का स्वागत विभागाध्यक्ष प्रो सुनील मोहन ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ रणधीर सिंह ने किया।
गुलाबी मीनाकारी व कोफ्तगरी उत्पाद की प्रदर्शनी लगी
कांफ्रेंस के दौरान बनारस की गुलाबी मीनाकारी उत्पाद और उदयपुर के कोफ्तगरी उत्पादों की प्रदर्शनी भी लगाई गई। संयोजक प्रो कमलेश कुमार सिंह और रिसर्च सहायक रचिता सिंह ने बताया कि गुलाबी मीनाकारी और कोफ्तगरी दोनों विधाओं में बहुमूल्य धातुओं जैसे सोने और चांदी का उपयोग किया जाता है। गुलाबी मीनाकारी का प्रदर्शन बनारस के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित कुंज बिहारी सिंह और कोफ्तगरी का प्रदर्शन उदयपुर के गनेश लाल ने किया।