असम और मेघालय की सरकारों ने मेघालय हाईकोर्ट द्वारा सीमा विवाद के लिए दिए गए फैसले के खिलाफ शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। दरअसल, हाईकोर्ट ने मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टेंडिंग (एमओयू) पर स्टे लगा दिया है जो दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने सीमा विवाद को खत्म करने के लिए हस्ताक्षर किए गए थे।
जल्द सुनावाई की मांग
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिंहा और जबी पारदीवाला की बेंच ने सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलें सुनीं। जिसमें उन्होंने इस मामले पर जल्द सुनवाई करने की अपील की। तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि हाईकोर्ट की एक सिंगल और डिविजनल बेंच ने इस साल के शुरुआत में साइन किए गए इंटर-स्टेट बॉर्डर पैक्ट के ऑपरेशन पर स्टे लगा दिया है। इसपर देश के मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि इस मामले की सुनवाई हम करेंगे और हमें याचिका की सभी प्रतियां उपलब्ध कराई जाएं।
पिछले साल हुआ था पैक्ट
मेघालय हाईकोर्ट की सिंगल जज बेंच ने 9 दिसंबर को इंटर-स्टेट बॉर्डर पैक्ट के संबंध में सीमा चौकियों के निर्माण पर अंतरिम स्टे लगाया था लेकिन इसके बाद हाईकोर्ट की डिविजन बेंच ने ही उपरोक्त आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। यही कारण है कि दोनों सरकारों को सुप्रीम कोर्ट का रुख करना पड़ा है।
मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड़ के. संघमा और असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने मार्च में एमओयू पर हस्ताक्षर किए थे। इसके तहत सीमा के उन 12 स्थानों में से कम से कम 6 का सीमांकन करने पर सहमती जताई गई थी जिन पर दो राज्यों के बीच सबसे अधिक संघर्ष की स्थिति बनती है।
50 सालों से जारी है विवाद
पिछले साल 29 मार्च को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की उपस्थिति में दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। पैक्ट के तहत दोनों राज्यों के बीच की 884.9 किलोमीटर की सीमा के 12 में से 6 स्थानों के लिए समाधान खोजा गया था जिसको लेकर सबसे ज्यादा संघर्ष हुए हैं।
असम और मेघालय के बीच का यह सीमा विवाद लगभग पिछले 50 सालों से चला आ रहा है। इसे सुलझाने की कोशिशों की वजह से ही हालिया दिनों में माहौल शांत है। मेघालय को 1972 में असम से अलग कर नया राज्य बनाया गया था। लेकिन मेघालय ने असम रीऑर्गनाइजेशन एक्ट 1971 को चुनौती दी थी। इसी के चलते सीमा के 12 स्थानों पर विवाद शुरू हो गया था।