रूस की ओर से निर्यात किए जाने वाले क्रूड ऑइल की जी-7 देशों ने दरें तय करने का फैसला लिया है। इसके चलते पूरी दुनिया में कच्चे तेल के बाजार में हलचल मचने की संभावना है। हालांकि इससे भारत पर शायद असर नहीं होगा। इसकी वजह यह है कि भारत तेल के ट्रांसपोर्टेशन के लिए पश्चिमी देशों की सेवाओं का इस्तेमाल नहीं करता है। भारत की ओर से गैर-पश्चिमी सर्विसेज ही इस्तेमाल की जाती हैं। कहा जा रहा है कि जी-7 की ओर से कीमत तय किए जाने के फैसले का असर फरवरी से दिखना शुरू होगा। यह प्राइस कैप उन देशों पर लागू होगी, जो पश्चिमी देशों के शिप और इंश्योरेर्स की सेवाएं लेते हैं।
अमेरिका के नेतृत्व वाले जी-7 देशों ने कच्चे तेल पर प्राइस कैप का फैसला इसलिए लिया है ताकि रूस को क्रूड की सेल से होने वाले मुनाफे को रोका जा सके। जी-7 के इस फैसले का यूरोपियन यूनियन और ऑस्ट्रेलिया ने भी समर्थन किया है। वहीं भारत ने इस फैसले को लेकर कहा है कि गैर-पश्चिमी देशों के जहाज कम हैं और इंश्योरर भी मार्केट में कम हैं। ऐसे में मार्केट में हलचल होनी तेज है, लेकिन भारत की ओर से गैर-पश्चिमी जहाजों का ही इस्तेमाल किया जा रहा है। इसलिए भारत को रूस से सस्ता तेल मिलना जारी रहेगा।
दुनिया में कच्चे तेल को लेकर एक संकट यह भी पैदा हुआ है कि सऊदी अरब और रूस की लीडरशिप वाले ओपेक प्लस देशों ने उत्पादन में कमी करने का फैसला लिया है। नवंबर से ही उत्पादन में कटौती लागू हो गई है और यह 2023 के अंत तक रहने वाली है। हालांकि यह सब ऐसे वक्त में हो रहा है, जब चीन जैसे देश की इकॉनमी स्लोडाउन के रास्ते पर है।
चीन में तेल की सबसे ज्यादा खपत है और मांग में कमी आने से निश्चित तौर पर असर पड़ेगा। ऐसे में प्राइस कैप और उत्पादन में कमी जैसे फैसले भी महंगाई बहुत ज्यादा नहीं भड़का सकेंगे। इसका सीधा लाभ भारत को होगा, जो यूक्रेन पर रूसी हमले के कुछ महीने बाद से ही सस्ता तेल खरीद रहा है। प्राइस कैप का फैसला करने वाले जी-7 देशों में अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान और ब्रिटेन आते हैं।