गोविंद बल्लभ (जीबी) पंत अस्पताल (GB Pant Hospital) में नई तकनीक के जरिये मरीजों के हार्ट में वाल्व (Heart Valve) निःशुल्क लगाया जा रहा है। पूर्व में वाल्व लगवाने का खर्च सरकारी अस्पताल में 40 से लेकर 80 हजार रुपये तक आता था, जबकि निजी अस्पताल में यह कीमत 80 हजार से लेकर पांच लाख रुपये तक थी।
नई तकनीक से जीबी पंत में वाल्व बदलने की शुरुआत कार्डियोथोरेसिक वैस्कुलर सर्जरी विभाग के डॉ. सय्यद एहतेशाम नकवी ने की है। एहतेशाम नकवी ने बताया कि ओजाकी तकनीक से जो वाल्व बनाकर मरीजों में लगाए जा रहे हैं, वह जापान की तकनीक है। जीबी पंत में यह सुविधा पूरी तरह निःशुल्क है।
बाजार में उपलब्ध दो तरह के वाल्व
डॉ. नकवी ने बताया कि बाजार में दो तरह के वाल्व उपलब्ध हैं। एक मैकेनिकल वाल्व और दूसरा वायो प्रोस्थेटिक वाल्व। मैकेनिकल वाल्व मैटल के बने होते हैं। इसलिए इन पर खून का थक्का जमने का खतरा रहता है। जिंदगी भर मरीज को खून पतला करने की दवा खानी पड़ती है। वहीं, वायो प्रोस्थेटिक वाल्व जो सुअर या गाय के टिश्यू से बनाए जाते हैं। इसे लगाने से खून पतला करने की दवा तो नहीं खानी पड़ती, पर ये अधिक टिकाऊ नहीं होते हैं। 10 साल में ही खराब हो जाते हैं।
नई तकनीक के बड़े फायदे
डॉ. एहतेशाम नकवी ने कहा कि नई तकनीक में वाल्व मरीज के शरीर के ही टिश्यू से बनाकर लगाए जाने के कारण यह निःशुल्क है। मरीज को इन्हें बाहर से खरीदने की जरूरत नहीं है। इस तरह के वाल्व को लगाने से मरीज को जिंदगी भर खून पतला करने वाली दवा नहीं खानी होती है। ये मार्केट में उपलब्ध वाल्व की तुलना में अधिक टिकाऊ होते हैं। इसलिए जल्दी वाल्व बदलने की जरूरत नहीं पड़ती है।
ओजाकी तकनीक से बनाया जा रहा वाल्व
जीबी पंत इस तकनीक का प्रयोग करने वाला दिल्ली-एनसीआर का पहला और देश का दूसरा अस्पताल है। अभी तक वाल्व के लिए मरीज को 40 हजारक से लेकर पांच लाख रुपये तक खर्च करने होते थे।
जानें क्या है ओजाकी तकनीक
डॉ. नकवी ने बताया कि इसे जापान के प्रो. शिगेयुकी ओजाकी ने विकसित किया है। इसलिए उनके नाम पर ही इस तकनीक का नाम रखा गया है। इसमें मरीज के हार्ट के ऊपर की पेरिकार्डियम झिल्ली (टिश्यू) से ही वाल्व बनाया जाता है। इसे मरीज के खराब हुए वाल्व को निकालकर उसकी जगह लगा दिया जाता है।