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छठे दीक्षांत समारोह में राज्यपाल ने प्रदान किए 42 छात्र-छात्राओं को स्वर्ण पदक

उत्तराखंड के राज्यपाल एवं कुलाधिपति लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) गुरमीत सिंह ने सोमवार को दून विश्वविद्यालय के छठे दीक्षांत समारोह में विभिन्न संकायों के 42 छात्र-छात्राओं को स्वर्ण पदक से सम्मानित किया। इनमें से 34 पदक प्राप्त कर छात्राएँ अव्वल रहीं। विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए राज्यपाल ने कहा कि दीक्षांत केवल उपाधि प्राप्ति का क्षण नहीं, बल्कि छात्र से जिम्मेदार नागरिक बनने की यात्रा का आरम्भ है। उन्होंने इसे अमृत पीढ़ी के परिश्रम, अनुशासन और संकल्प का उत्सव बताया। उन्होंने उपाधि तथा पदक प्राप्त करने वाले सभी मेधावी छात्र-छात्राओं, उनके अभिभावकों और शिक्षकों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ देते हुए इसे विद्यार्थियों की व्यक्तिगत उपलब्धि के साथ-साथ उनके माता-पिता के त्याग, शिक्षकों के मार्गदर्शन और दून विश्वविद्यालय की सकारात्मक शैक्षणिक संस्कृति का परिणाम बताया। विश्वविद्यालय द्वारा इस वर्ष दीक्षांत समारोह की विषयवस्तु को कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) पर केंद्रित किया गया, जिस पर प्रकाश डालते हुए श्री सिंह ने तकनीक और विशेष रूप से एआई के संदर्भ में कहा कि वर्तमान समय का यह एक सशक्त माध्यम है, जो शिक्षा, अनुसंधान और कार्यशैली को नई दिशा दे रहा है। उन्होंने अपने सम्बोधन में दीक्षांत समारोह के मुख्य वक्ता एवं IIT बॉम्बे के प्रोफेसर गणेश रामकृष्णन द्वारा ‘भारतजेन’ जैसी स्वदेशी एआई पहल का उल्लेख करते हुए कहा कि भारतीय भाषाओं और संस्कृति के अनुरूप तकनीकी समाधान विकसित करने से तकनीक वास्तव में जन-जन तक पहुँचती है। राज्यपाल ने दून विश्वविद्यालय सहित देश की अमृत पीढ़ी के युवाओं से आह्वान किया कि वे एआई का नैतिक, मानवीय और समाजोपयोगी उपयोग करते हुए उत्तराखण्ड की भौगोलिक चुनौतियों और स्थानीय समस्याओं के समाधान हेतु नवाचार-आधारित कार्य करें। उन्होंने कहा कि विकसित भारत @2047 का लक्ष्य केवल आर्थिक प्रगति नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, सांस्कृतिक गौरव और मानवीय मूल्यों से युक्त राष्ट्र-निर्माण का संकल्प है, जिसमें युवाओं की भूमिका निर्णायक होगी। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को दूरदर्शी पहल बताते हुए कहा कि इसका उद्देश्य ‘जॉब सीकर’ नहीं, बल्कि ‘जॉब क्रिएटर’ तैयार करना है, और दून विश्वविद्यालय इस दिशा में सार्थक प्रयास कर रहा है। उन्होंने उत्तराखण्ड की भौगोलिक चुनौतियों का उल्लेख करते हुए कहा कि पलायन और आपदा-संवेदनशीलता जैसी समस्याओं का समाधान स्थानीय नवाचार, स्वरोजगार और सतत विकास में निहित है। उन्होंने छात्राओं की बड़ी भागीदारी पर विशेष प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि महिलाओं की प्रगति ही राज्य की वास्तविक प्रगति है। उन्होंने शिक्षा के वास्तविक उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शिक्षा केवल सूचना देने का माध्यम नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण की प्रक्रिया है। उन्होंने सत्य, ईमानदारी, अनुशासन और परोपकार को जीवन की सफलता के मूल स्तंभ बताते हुए विद्यार्थियों से आह्वान किया कि वे किसी भी प्रकार के दुर्व्यसन, नशे या डिजिटल लत से स्वयं को दूर रखें और ‘राष्ट्र प्रथम’ की भावना को अपने जीवन का मार्गदर्शक सिद्धांत बनाएं। सिंह ने विद्यार्थियों को अपनी जड़ों से जुड़े रहने, समाज के कमजोर वर्गों के सशक्तीकरण के लिए कार्य करने और राष्ट्रहित को सर्वाेपरि रखने का संदेश दिया। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि दून विश्वविद्यालय के स्नातक जहाँ भी जाएंगे, राज्य और राष्ट्र के सच्चे दूत बनकर भारत का मान बढ़ाएंगे। इस अवसर पर उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने उपाधि धारकों को बधाई और भविष्य के लिए अपनी शुभकामनाएं दी। समारोह में कुलपति प्रो. सुरेखा डंगवाल ने विश्वविद्यालय की प्रगति आख्या एवं यहां संचालित सेंटर फॉर हिंदू स्टडीज और डॉ. अम्बेडकर चेयर की जानकारी देते हुए बताया कि भारतीय ज्ञान परंपरा, सामाजिक न्याय, महिला सशक्तीकरण और समतामूलक समाज के निर्माण में ऐसे शैक्षणिक प्रयासों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। दीक्षांत समारोह के मुख्य वक्ता एवं आईआईटी बॉम्बे के प्रोफेसर गणेश रामकृष्णन ने अपने सम्बोधन में कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस किसी प्रकार की बाधा नहीं, बल्कि अपार संभावनाओं से भरा अवसर है। उन्होंने विद्यार्थियों से आह्वान किया कि वे एआई को केवल उपयोग करने तक सीमित न रखें, बल्कि उसे आत्मसात करते हुए उपयोगकर्ता से निर्माता बनने की दिशा में ठोस कदम बढ़ाएँ, ताकि तकनीक समाज और राष्ट्र के लिए सृजन का माध्यम बन सके। समारोह में पद्मश्री बसंती बिष्ट, कल्याण सिंह रावत ”मैती”, डॉ. बी.के.एस. संजय, पूर्व डीजीपी अनिल रतूड़ी सहित विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपति, विद्या परिषद, कार्य परिषद के सदस्य, छात्र-छात्राएं और अन्य लोग उपस्थित रहे।

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