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कांग्रेस भूपेश बघेल और टीएस सिंह के संघर्ष से निपटने की कोशिश में जुटी, भाजपा की राह भी आसान नहीं

छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में कुछ ही महीनों का वक्त बचा है। एक तरफ कांग्रेस यहां भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव के आपसी संघर्ष से निपटने की कोशिश में जुटी है तो वहीं भाजपा की राह भी आसान नहीं है। भाजपा ने 2018 में यहां अपनी 15 साल की सत्ता गंवाई थी। इसके बाद उसने यहां बड़े बदलाव किए थे। पूर्व सीएम रमन सिंह को भाजपा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना चुकी है। तीन बार के सीएम रहे रमन सिंह ठाकुर बिरादरी से आते हैं और उनके मुकाबले दिग्गज नेता कहे जाने वाले बृजमोहन अग्रवाल वैश्य समुदाय से हैं। ऐसे में भाजपा के सामने आदिवासी और ओबीसी बहुल राज्य में सवर्णों को प्रमुखता देने के आरोप लगते रहे हैं। 

यही वजह है कि भाजपा ने संगठन से लेकर विधानसभा तक में अपने नेतृत्व में बड़े बदलाव पिछले दिनों किए थे। पार्टी ने इसी साल सितंबर में अरुण साव को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है, जो आदिवासी समाज से आते हैं। इसके अलावा नारायण चंदेल को पार्टी ने विधानसभा में विपक्ष का नेता बनाया है, जो ओबीसी वर्ग के नेता हैं। इस तरह भाजपा ने छत्तीसगढ़ में खुद की सामान्य वर्ग की पार्टी होने की छवि से मुक्ति पाने की कोशिश की है। यही नहीं संगठन के पेच कसने के लिए ओम माथुर को राज्य का प्रभारी बनाया गया है।

रमन सिंह के कद का दूसरा नेता अब तक नहीं तैयार

हालांकि राज्य में भाजपा के पास अब भी लोकप्रिय चेहरे का अभाव है। यदि रमन सिंह को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर छत्तीसगढ़ की राजनीति से बाहर निकाला गया है तो अब तक कोई दूसरा चेहरा उनके जैसा चर्चित होता भी नहीं दिखा है। वहीं बृज मोहन अग्रवाल और रमन सिंह खेमे के बीच मतभेद की खबरें भी आती रही हैं। ओबीसी आरक्षण का कार्ड चलकर भूपेश बघेल ने कांग्रेस को मजबूती जरूर दी है। इसके अलावा गो संवर्धन से जुड़ी योजनाएं चलाकर उन्होंने भाजपा के हिंदुत्व कार्ड को भी थोड़ा कमजोर किया है। ऐसे में देखना होगा कि पीएम नरेंद्र मोदी की छवि और केंद्र सरकार के कामकाज के भरोसे कैसे भाजपा राज्य में सत्ता से अपना वनवास खत्म करती है।

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