महाराष्ट्र में असली शिवसेना पर दावे को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और वर्तमान मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के बीच चल रही कानूनी लड़ाई में आज सुप्रीम कोर्ट में फिर सुनवाई है। इससे पहले बुधवार को दोनों गुटों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दलीलें रखी गईं। शिंदे गुट की ओर से कहा गया कि नेतृत्व के खिलाफ आवाज उठाना विद्रोह या दल बदल नहीं है। यह पार्टी के अंदर का विवाद है।
दूसरी ओर उद्धव ठाकरे गुट ने दलील दी कि शिवसेना के बागी विधायकों के आचरण से साफ है कि उन्होंने पार्टी छोड़ दी है। इसलिए कानून के मुताबिक सभी अयोग्य हो गए हैं और सदन में हुई सारी कार्यवाही यानी स्पीकर का चुनाव व मुख्यमंत्री की नियुक्ति तक सभी गैरकानूनी हैं। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने शिंदे गुट से कहा कि वह अपने कानूनी सवाल फिर से तय करके स्पष्ट रूप से लिखित तौर पर कोर्ट को दे। कोर्ट मामले में गुरुवार को फिर सुनवाई करेगा।
प्रधान न्यायाधीश एनवी रमणा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ उद्धव और शिंदे गुट की ओर से दाखिल विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। उद्धव ठाकरे गुट ने कई याचिकाएं शीर्ष कोर्ट में दाखिल कर रखी हैं। एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने और नया स्पीकर नियुक्त करने को चुनौती दी गई है। ठाकरे गुट ने शिवसेना के विद्रोही विधायकों को अयोग्य घोषित करने की भी मांग की है। उद्धव गुट की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी तथा एकनाथ शिंदे गुट की ओर से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने दलीलें दीं।
उद्धव गुट की दलील
- संविधान की दसवीं अनुसूची के प्रविधानों के तहत शिवसेना के बागी विधायक अयोग्य हो चुके हैं। अलग हुए गुट ने न तो किसी पार्टी में विलय किया है और न ही कोई अलग दल बनाया है।
- उनका सारा आचरण पार्टी विरोधी है। वे अयोग्य हैं और स्वयं मूल शिवसेना होने का दावा कर रहे हैं।
- शिंदे गुट द्वारा की गई सदन की सारी कार्यवाही गैरकानूनी है।
- अयोग्य होने की सूरत में ये चुनाव आयोग में कैसे जा सकते हैं? इनकी चुनाव आयोग में लगाई सभी अर्जियों पर भी रोक लगाई जाए
शिंदे गुट की दलील
- पार्टी में मतभेद को दल बदल नहीं कहा जा सकता। दल बदल कानून तब लागू होता है जब कोई पार्टी छोड़े।
- हमने पार्टी नहीं छोड़ी है। हम शिवसेना ही हैं। यहां विवाद नेतृत्व को लेकर है। नेतृत्व के खिलाफ आवाज उठाना दल बदल नहीं है।
- हमारे देश में समस्या यह है कि यहां नेता को ही पार्टी समझ लिया जाता है। अगर पार्टी के ज्यादातर लोग यह कहते हैं कि उन्हें नेता पर विश्वास नहीं है तो इसमें दल बदल कहां से आ गया।
- यहां पार्टी के दो गुटों की बात है, दो शिवसेना की बात नहीं है।