बादशाहबाग स्थित पशुपालन निदेशालय में सात वर्ष से बंद पड़ा पशु जैविक औषधि (बीपी संस्थान) मार्च 2026 में शुरू होने की उम्मीद है। जहां औषधि महानियंत्रक से लाइसेंस लेकर हाईटेक लैब में आधुनिक मशीनों से पशुओं की एचएस, स्वाइन फीवर, ईटी और बीक्यू वैक्सीन बनेंगी। मंंगलवार को प्रमुख सचिव मुकेश मेश्राम ने विशेष सचिव देवेंद्र पांडेय, निदेशक राजेंद्र प्रसाद, अपर निदेशक संगीता तिवारी और कमेटी के सदस्य आईवीआरआई बरेली के प्रधान वैज्ञानिक बबलू कुमार, सलाउद्दीन कुरैसी, पूर्व अपर निदेशक डॉ. एसके अग्रवाल, ज्वाइंट कमिश्नर एनआईएएच बागपत डॉ. अश्ववनी कुमार व औषधि आयुक्त की प्रतिनिधि निधि पांडेय के साथ निरीक्षण किया। औषधि महानियंत्रक के मानकों पर लैब पर 100 फीसद सिविल कार्य पूर्ण पाया। मौके पर तापमान नियंत्रित करने के लिए एचबैक के डक्स्ट लगते पाए। मशीनों की खरीद देखी। प्रमुख सचिव ने कार्यदायी संस्था को हर हाल में तय समय पर लैब तैयार करने के निर्देश दिए। इसके बाद सभागार में समीक्षा की। पशुपालन विभाग पहले की तरह औषधि महानियंत्रक से लाइसेंस लेकर गुणवत्ता युक्त स्वयं वैक्सीन बनाएगा। इससे बाहर से खरीद की निर्भरता खत्म होगी और करोड़ों रुपये सरकार के बचेंगे। समय-समय पर शोध करके वायरल व बीमारियों की वैक्सीन भी बनेंगे। गौरतलब है कि 2023 में लाइसेंस की प्रक्रिया के दौरान बीपी संस्थान द्वारा सैंपल के तौर पर बनाई गईं वैक्सीन आईवीआरआई के परीक्षण में मानकों पर खरी उतरीं थी। इस क्रम में पुरानी लैब 14 करोड़ से हाईटेक संसाधनों से विकसित की जा रही है। वॉटर फॉर इंजेक्शन प्लांट, धूल-मिट्टी न जमें इसके लिए दीवारों पर ई-पॉक्सी कोडिंग, तापमान नियंत्रित रखने के लिए एचवी एसी प्लांट, ब्वायलर, ऑटोमेटिक फिलिंग एंड बॉटलिंग मशीन आदि आधुनिक मशीन। बीपी संस्थान में वर्ष 1945 से कुल आठ वैक्सीन ईटी, एचएस, बीक्यू, स्वाइन फीवर, एफआई, पूल पॉक्स, पीपीआर व एचएस-2 ऑयल वैक्सीन बनती थीं। उस समय लाइसेंस जैसी अनिवार्यता नहीं थी न ही हाईटेक लैब व आधुनिक मशीनें थी। फिर भी गुणवत्तायुक्त वैक्सीन विभाग न के बराबर लागत पर तैयार करता था। इसमें सबसे ज्यादा एचएस वैक्सीन बनती थी। लेकिन, सात वर्ष पहले औषधि महानियंत्रक ने लाइसेंस न होने की आपत्ति पर प्रतिबंध लगा दिया था।
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