भारतीय उद्योगपति और अडानी समूह के अध्यक्ष गौतम अडानी ने अमेरिकी अभियोजकों द्वारा लगाए गए आरोपों का शनिवार को जयपुर में आयोजित 51वें जेम एंड ज्वेलरी अवार्ड्स के दौरान जवाब दिया। उन्होंने कहा, “हर हमला हमें और मजबूत बनाता है और हर बाधा हमारे लिए एक सीढ़ी बन जाती है।”
गौतम अडानी ने कहा, “जैसा कि आपमें से अधिकांश ने पढ़ा होगा, लगभग दो सप्ताह पहले अमेरिका से अडानी ग्रीन एनर्जी पर अनुपालन से जुड़े आरोप लगे। यह पहली बार नहीं है जब हमें इस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा हो। मैं आपको यह बता सकता हूं कि नकारात्मकता की गति तथ्यों से अधिक तेज होती है, लेकिन हम हर बार और अधिक मजबूत होकर उभरते हैं।”
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि “अडानी की ओर से किसी पर भी विदेशी भ्रष्ट आचरण अधिनियम (FCPA) का उल्लंघन या न्याय प्रक्रिया में बाधा डालने का आरोप नहीं है। हम कानूनी प्रक्रिया के तहत काम कर रहे हैं और विश्वस्तरीय नियामक अनुपालन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराना चाहते हैं।”
गौतम अडानी पर आरोपों की प्रकृति
अमेरिकी अभियोजकों ने अडानी पर $250 मिलियन की रिश्वत देकर भारतीय सरकारी अधिकारियों से सोलर ऊर्जा परियोजनाओं के ठेके हासिल करने की योजना में शामिल होने का आरोप लगाया है।
इसके अलावा, अडानी और उनके अधिकारियों पर अमेरिकी निवेशकों और ऋणदाताओं को कंपनी की एंटी-ब्राइबरी (रिश्वत-रोधी) नीतियों और प्रतिबद्धताओं के बारे में झूठी और भ्रामक जानकारी देने का आरोप भी लगाया गया है।
अडानी समूह ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए उन्हें “आधारहीन” बताया। समूह ने अपने बयान में कहा, “अडानी ग्रीन के निदेशकों के खिलाफ अमेरिकी न्याय विभाग और सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन द्वारा लगाए गए आरोप बेबुनियाद हैं और इनका खंडन किया जाता है।”
भारत में राजनीतिक प्रतिक्रिया
इन आरोपों ने भारत में राजनीतिक हंगामा खड़ा कर दिया है। विपक्षी पार्टियों, विशेष रूप से कांग्रेस, ने गौतम अडानी के खिलाफ जांच की मांग की है।
वहीं, नरेंद्र मोदी सरकार ने इसे निजी कंपनियों और अमेरिकी न्याय विभाग के बीच कानूनी मामला बताया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जैसवाल ने कहा, “हम इसे निजी कंपनियों और व्यक्तियों तथा अमेरिकी न्याय विभाग के बीच का मामला मानते हैं। ऐसे मामलों में स्थापित प्रक्रियाएं और कानूनी रास्ते मौजूद हैं। भारतीय सरकार को इस मुद्दे के बारे में पहले से कोई जानकारी नहीं थी और न ही इस पर अमेरिकी सरकार के साथ कोई चर्चा हुई है।”