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चीन देश के अंदर घूमने वाले यात्रियों को क्वारंटाइन करने की जरूरत को करेगा खत्म, पढ़ें पूरी खबर ..

नये साल पर कोरोना महामारी एक बार फिर दुनियाभर के कई देशों में कहर बरपा रहा है। चीन, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे दिग्गज देशों में एक बार फिर कोरोना केसों में तेजी देखी गई है। WHO की रिपोर्ट बताती है कि अभी तक 650 मिलियन से अधिक लोगों में कोरोना की पुष्टि हो चुकी है। कोरोना को लेकर एक नई रिसर्च सामने आई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना ने सिर्फ हमे मौत और अस्पताल के चक्कर ही नहीं लगाये हमारी नींद और सपनों में भी घुसपैठ की है।

वैज्ञानिकों की रिसर्च टीम ने कोरोना महामारी के शुरुआती चरण से ही नींद के पैटर्न पर काम करना शुरू किया। लॉकडाउन और उसके बाद की परिस्थितियों पर रिसर्च की गई। 14 देशों के कई लोगों ने इसमें भाग लिया। इसमें पाया गया कि हम पहली लहर के दौरान लॉकडाउन में ज्यादा सोए लेकिन नींद की गुणवत्ता खराब थी। दूसरी लहर में हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर और अधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। न सिर्फ नींद प्रभावित हुई, कोरोना ने हमारे सपनों में भी घुसपैठ की।

नींद उड़ी, सपनों में घुसपैठ
सबसे हालिया विश्लेषण से अनुमान लगाया गया है कि कोरोना से पीड़ित 52% लोग संक्रमण के दौरान नींद की गड़बड़ी से परेशान रहे। मामले में लोगों ने रिपोर्ट किया कि सबसे आम प्रकार नींद न आना था। अनिद्रा से पीड़ित लोगों को आमतौर पर सोते रहना मुश्किल लगा और वे अक्सर सुबह जल्दी उठ जाते थे। चीन में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि जिन 26% लोगों को COVID के साथ अस्पताल में भर्ती कराया गया था, उनमें डिस्चार्ज होने के दो सप्ताह बाद तक अनिद्रा के लक्षण दिखाई दिए। वहीं, एक अमेरिकी अध्ययन से पता चला है कि जो लोग कोरोना संक्रमित ही नहीं हुए, उन पर अनिद्रा की परेशानी ज्यादा दिखी। वे एक महीने से ज्यादा अंतराल तक नींद न आने की बीमारी से जूझते रहे।

80 फीसदी लोगों को नींद न आने की दिक्कत
अध्ययन से यह भी पता लगा कि सर्वेक्षण में भाग लेने वाले 3000 में से 80% लोगों में नींद न आने की बीमारी देखी गई। खासकर कोरोना संक्रमण से उबरने के बाद भी वे अनिद्रा का शिकार हुए। इसके अलावा एक और हालिया अध्ययन में सामने आया कि जिन लोगों को कभी कोरोना ही नहीं हुआ वो कोरोना संक्रमितों की तुलना में ज्यादा सोए।

नींद न आने की वजह क्या है
कोविड संक्रमण के कारण नींद खराब होने के कई कारण हो सकते हैं। वैज्ञानिकों का तर्क है कि शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और पर्यावरणीय कारकों के कारण ऐसा हुआ। कोरोना का मस्तिष्क पर सीधा प्रभाव पड़ा, जिससे नींद नहीं आई। हालांकि यह कैसे हुआ, इस तथ्य का रिपोर्ट ने जिक्र नहीं किया है। लेकिन, संभावित कारणों के रूप में यह बताया गया कि कोरोना के विशिष्ट लक्षणों बुखार, खांसी और सांस लेने में कठिनाई होने के कारण नींद में खलल पड़ सकता है।

कोरोना की सपने में भी सेंध
कोरोना के बाद मानसिक स्वास्थ्य में बदलाव पर आधारित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि लोगों के सपनों पर भी कोरोना की घुसपैठ हुई है। 14 देशों के लोगों पर किये निष्कर्ष से पता लगता है कि संक्रमितों को बुरे सपने ज्यादा झेलने पड़े। जो लोग कोरोना से संक्रमित नहीं हुए, उनमें बुरे स्वप्न की दर (कितने अंतराल में) कम रही। वहीं, जिन लोगों को कोरोना हुआ, उन्हें बुरे सपने ज्यादा आए, जो दिखाता है कि कोरोना संक्रमण की वजह लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा।

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